भोंपूराम खबरी। देश में मुस्लिमों की सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और राजनैतिक संगठनों से जुड़ी 103 साल पुरानी संस्था ‘जमीयत उलमा- ए-हिंद’ के 2008 में दो गुट बनने के 14 सालों के बाद अब फिर से एक हो जाने की प्रबल संभावनाएं पैदा हो गई है।
एक धडे के अध्यक्ष एवं दारूल उलूम के प्रिंसिपल मौलाना अरशद मदनी ने दूसरे धडे के अध्यक्ष अपने ही भतीजे मौलाना महमूद मदनी द्वारा जमीयत की गवर्निंग बाॅडी के सालाना सम्मेलन में पहुंचकर सभी को चौंका दिया और उन्होंने खुद देश भर से जुटे उलेमांओं को संबोधित किया।अरशद मदनी ने जहां अन्य वक्ताओं के स्वर में स्वर मिलाते हुए अपनी बात रखी, वहीं सबसे अहम और चौंकाने वाली बात उन्होंने यह कही कि देश के मौजूदा हालात के मद्देनजर बहुत जल्द जमीयत के दोनो धड़े फिर से एक हो सकते है।
जमीयत के अंदरूनी मामलों के जानकार अशरफ उस्मानी कहते है कि मौलाना ने यह ऐलान अचानक नहीं किया।भीतरी तौर पर इसे लेकर बड़ी कोशिशे बड़े लोगों द्वारा की जा रही है।ध्यान रहे जमीयत उलमा -ए -हिंद, इसके तत्कालीन अध्यक्ष मौलाना असद मदनी के 06 फरवरी 2006 को निधन के बाद दो धड़ों में बंट गई थी।एक धड़े की नुमाइंदगी असद मदनी के छोटे भाई मौलाना अरशद मदनी कर रहे है और दूसरे धड़े पर असद मदनी के बेेटे मौलाना महमूद मदनी काबिज है।नई दिल्ली के जमीयत के दफ्तर मस्जिद अब्दुल नबी पर दोनो गुटों का कब्जा बंटवारे के बाद से ही चला आ रहा है।
जमीयत उलमा -ए -हिंद के कई पदाधिकारी दारूल उलूम देवबंद में पढ़ाते भी हैं और कई उसकी प्रबंध समिति के सदस्य है।माना जाता है कि दारूल उलूम के चांसलर मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी है, पर जमीयत का संस्था पर सीधा नियंत्रण है।जमीयत के दो धड़ों में बंटने के बाद से दारूल उलूम का प्रबंधन भी प्रभावित हुआ है और मजलिशे शूरा गुटबाजी का शिकार हुई है।