किसान नेता बाजवा की उपेक्षा कांग्रेस को तराई में न पड़ जाए भारी

भोंपूराम ख़बरी,बाजपुर। उधम सिंह नगर जनपद में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर गतिविधियां तेज हो गई हैं। सभी पार्टियां जी-जान से चुनाव प्रचार में जुटी हुई हैं। लेकिन इस बीच सोमवार को सोशल मीडिया के कुछ प्लेटफार्म्स पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों की संभावित प्रथम सूची जारी होने के बाद तराई क्षेत्र के जनपद उधम सिंह नगर में राजनीतिक हलचल मच गई है। इस सूची में एक नाम से जनपद में सबसे ज्यादा हलचल देखी जा रही है और वह नाम बाजपुर के विधायक यशपाल आर्य का है जो हाल ही में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। कुछ सोशल वेबसाइट के मुताबिक बाजपुर से कांग्रेस ने यशपाल आर्य का टिकट फाइनल कर दिया है। लेकिन यदि ऐसा होता है तो बाजपुर कांग्रेस में फूट पड़ना तय है।

ज्ञात हो कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में आर्या कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा में शामिल होकर बाजपुर से चुनाव में उतरे थे। उनके सामने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आई सुनीता टम्टा बाजवा थी जो तराई के कद्दावर नेता जगतार सिंह बाजवा की पत्नी हैं। मोदी लहर के बीच मामूली वोटों के अंतर से टम्टा चुनाव हार गई थी। यशपाल जीते व भाजपा सरकार में मंत्री बने। लेकिन साल 2019 में कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन ने तराई की राजनीतिक स्थितियां परिवर्तित कर दी। गाजीपुर बॉर्डर पर सुनीता टम्टा बाजवा के पति व राष्ट्रीय एथेलीट रहे जगतार सिंह बाजवा न सिर्फ किसान नेता राकेश टिकैत के दाहिने हाथ बनकर उभरे बल्कि राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर भी उन्होंने अपनी पहचान बनायी। चूंकि तराई और विशेषकर बाजपुर एक कृषि बाहुल्य क्षेत्र है तो ऐसे में बाजपुर में भाजपा की केंद्र व राज्य में सत्तारूढ़ सरकार को व्यापक विरोध झेलना पड़ा। इसी बीच बाजपुर की सीलिंग की जमीन राज्य हित में निहित किये जाने को लेकर भी जगतार सिंह बाजवा ने लंबा संघर्ष किया। जगतार अब एक निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे और टिकैत का उनके प्रति स्नेह व आशीष जगजाहिर हो चुका था।

अब यदि आगामी विधानसभा चुनाव पर नज़र डाली जाए तो उधम सिंह नगर में स्थितियां भाजपा के पक्ष में नहीं दिखती। नौ सीटों पर बीता चुनाव 8-1 से जीतने वाली भाजपा इस बार घाटा खाती दिख रही है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में किसान नेताओं की भूमिका अहम होगी। जनपद की नानकमत्ता, खटीमा, सितारगंज, गदरपुर, बाज़पुर, जसपुर और काशीपुर सीटों पर किसान अहम भूमिका निभाएंगे। यह भी तय है कि यदि जगतार सिंह बाजवा चुनावी ताल ठोंकते हैं तो राकेश टिकैत खम से कदम मिलाएंगे। उनकी उपस्थिति ही किसान बाहुल्य क्षेत्र बाजपुर में परिवर्तन उत्पन्न कर देगी। यही नहीं यदि टिकैत चाहेंगे तो जनपद की अन्य सीटों पर भी असर पड़ेगा।

यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस ने किसान आंदोलन का हमेशा समर्थन किया और उत्तराखंड ही नहीं यूपी की राजनीति में भी किसानों और दिल्ली बॉर्डर के किसान नेताओं का महत्व रहेगा। संयुक्त किसान मोर्च पांच राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनाव में महती भूमिका निभाएगा।

वहीं बाजपुर के वर्तमान यशपाल आर्य पर यह आक्षेप हैं कि साढ़े चार साल भाजपा सरकार में मन्त्री पद रखने के बाद ऐन चुनाव के वक़्त वह विपरीत हवा देखकर कांग्रेस में शामिल हो गए। यानि उन्हें सत्तालोलुप माना जा रहा है।

अब कांग्रेस टिकट वितरण में जो भी निर्णय ले, लेकिन यह तय है कि उधम सिंह नगर में किसान नेताओं की नाराजगी सत्ता में वापसी की बाट जोह रही विपक्षी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है।

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