देवीधुरा बग्वाल, फल-फूल के बाद चले पत्थर

उत्तराखंड में देवीधुरा के ऐतिहासिक बग्वाल मेले में फल फूलों के बाद पारंपरिक तरीके से खूब चले पत्थर । नौ मिनट चले इस बग्वाल में प्रदेश की सांस्कृतिक छटा झलक गई । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वहां पहुंचकर लड़कों और सभी लोगों को बधाई दी ।चम्पावत से 65 किमी दूर पाटी तहसील के देवीधुरा क्षेत्र में आयोजित होने वाला बग्वाल मेला जिसे ‘पाषाण यु़द्ध’ भी कहा जाता है अपने आप में दुनिया में आयोजित होने वाल एक अनोखा मेला है। मेले की प्राचीन मान्यता है कि इस क्षेत्र में पहले नरवेद्यी यज्ञ हुवा करता था, जिसमें मां बाराही को खुश करने के लिए अष्ट बली दी जाती थी। एक समय ऐसा आया जब एक घर में एक वृ़द्ध महिला का एक ही पुत्र बचा जिसे वह बहुत प्यार करती थी। वृद्ध महिला ने मां बाराही को याद किया और रात्री मां बाराही ने वृद्ध महिला को दर्शन दिए और बग्वाल मेले के आयोजन की बात कही। माँ बाराही ने वृद्ध महिला से कहा कि जबतक एक आदमी के बराबर रक्त नहीं बहता तब तक बग्वाल मेले चलना चाहिए। तभी से मां बाराही धाम में बग्वाल मेले का आयोजन होने लगा। युद्ध मे चार खाम सात तोक के लोग भाग लेते हैं। पिछले कुछ वर्षो से हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बग्वाल में पत्थरों की जगह फल और फूलों का प्रयोग किया जाता है और रक्तदान शिविर लगाया जाता है। पुजारी के शँखनाद के साथ ही जैसे ही इस युद्ध का समापन होता है सभी टोलियों के लोग एक-दूसरे से गले मिलकर खुशी मनाते हैं और घायलों की कुशल क्षेम पूछते है। परम्परागत रुप से चारों खाम(ग्रामवासियों का समूह) गढ़वाल चम्याल, वालिक और लमगडिया आपस मे युद्ध करते हैं । मंदिर में रखा देवी विग्रह एक सन्दुक में बन्द रहता है । उसी के समक्ष पूजन सम्पन्न होता है । यही का भार लमगड़िया खाम के प्रमुख को सौंपा जाता है जिनके पूर्वजों ने पूर्व में रोहिलों के हाथ से देवी विग्रह को बचाने में अपूर्व वीरता दिखाई। इस बीच अठ्वार का पूजन होता है। जय जयकार के बीच डोला देवी मंदिर के प्रांगण में रखा जाता है । चारों खाम के मुखिया पूजन सम्पन्न करवाते है । गढ़वाल प्रमुख श्री गुरु पद से पूजन प्रारम्भ करते है । चारों खामों के प्रधान आत्मीयता, प्रतिद्वन्दिता, शौर्य के साथ बगवाल के लिए तैयार होते हैं । वीरों को अपने-अपने घरों से महिलाये आरती उतार, आशीर्वचन और तिलक चंदन लगाकर भेजती है ।

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