हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद पूरा नहीं हटा रुद्रपुर से चिह्नित अतिक्रमण 

साढ़े चार साल बीते आदेश को, नगर निगम की लापरवाही से अब हुए हवाई अतिक्रमण 

रुद्रपुर।  उच्च न्यायालय के आदेश के साढ़े चार वर्ष बाद भी रुद्रपुर नगर निगम बाजार क्षेत्र को अतिक्रमण से पूर्णतया मुक्त नहीं कर पाया है। लोगों का आरोप है कि शहर में कई रसूखदारों को बीते दो साल से निगम ने इमारतें स्वयं ही नियमानुसार ठीक करने का समय दे रखा है। जबकि पूर्व में चलाये गए अतिक्रमण हटाओ अभियान में लगभग अस्सी प्रतिशत बाजार को बेरहमी से ध्वस्त कर दिया गया था।

दरअसल जून 2016 में उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने रुद्रपुर नगर निगम और जिला प्रशासन को अतिक्रमण हटाने और अवैध संरचनाओं को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। अगस्त 2013 में जिला मुख्यालय रुद्रपुर में  प्रशासन द्वारा कुल 1,319 अवैध संरचनाएं चिह्नित की गयी थी। यह आदेश तब आया था जब नैनीताल उच्च न्यायालय की एक डबल बेंच जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट शामिल थे, एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहे थे। साल 2015 में एक गैर सरकारी संगठन, प्रतिज्ञा – द ओथ फाउंडेशन, द्वारा यह याचिका दायर की गयी थी।  संस्था के पदाधिकारियों ने अवैध संरचनाओं और अतिक्रमणों को हटाने में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की थी। इसके बाद न्यायालय  ने नगर निगम को एक आदेश भी जारी किया था कि अगस्त 2013 में चिन्हित किए गए फुटपाथों और सड़कों पर अतिक्रमण को ध्वस्त किया जाए। बाद में, निगम द्वारा 1,319 ऐसे अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी कर कहा गया कि सभी अवैध ढांचे ढहा दिए जायेंगे।
आदेश की बाबत सक्षम अधिकारियों के कार्रवाई न करने पर 23 मार्च, 2018 को, कोर्ट ने एक याचिका पर जिला मजिस्ट्रेट और आरएमसी आयुक्त के खिलाफ अदालत के अवमानना का नोटिस जारी किया था। इसमें कहा गया था कि निगम व अधिकारी अदालत के आदेश के बावजूद शहर में अतिक्रमण हटाने में विफल रहे। अदालत ने डीएम और कमिश्नर दोनों को 25 अप्रैल को पहचान किए गए अतिक्रमण हटाने के बाद ही अपने समक्ष पेश होने का निर्देश दिया था। इसके बाद हरकत में आये निगम ने 7 अप्रैल, 2018 को अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया गया। सैकड़ों अतिक्रमण ध्वस्त किये गये और यह योजना बनाई गई थी कि खाली स्थान पर फुटपाथ बनाए जाएंगे ताकि शहर के मुख्य बाजार में लोगों को चलने की खुली जगह मिले।
मुख्य बाजार के व्यवसायी मोहन लाल का कहना था कि प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है कि उसे खुली जगह घुमने को मिले। अधिकारियों की उदासीनता के कारण कुछ अतिक्रमंकारियों को इस अधिकार का हनन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण हटाओ अभियान के बाद भी लगभग 20 प्रतिशत इमारतें अभी भी वैसी की वैसी ही हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय व्यापारी ने आरोप लगाया कि निगम ने अतिक्रमण हटाने में पक्षपात किया है।  प्रभावशाली लोगों के स्वामित्व वाली कई इमारतों को ध्वस्त नहीं किया गया था और उन्हें आंशिक परिवर्तन करने की अनुमति दी गई थी ताकि वे यह दिखा सकें कि अदालत के आदेश का अनुपालन हुआ है। वीर हकीकत राय मार्ग, मटके वाली गली, पांच मंदिर मंदिर गली, अग्रवाल धर्मशाला गली जैसी सड़कों पर अभी भी नियम विरुद्ध ढेरों अतिक्रमण हैं। उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के बावजूद धार्मिक संगठनों के स्वामित्व वाले ढांचे को भी नहीं छुआ गया था।
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लोगों ने हवा में किये अतिक्रमण 
समाजसेवी संतोख सिंह ने कहा कि पूर्व में ध्वस्तीकरण की जद में आये लोगों ने भी अब अतिक्रमण का नया तरीका ईजाद किया है। उन्होंने अदालत के आदेश के अनुसार अपनी इमारतों में भूतल को तोड़ कर छोटा तो कर लिया लेकिन पहली मंजिल व उससे ऊपर के मालों पर सभी ने अपने ढांचों को हवा में बहुत आगे तक बढ़ा लिया है। उनका आरोप है कि निगम ने भी कानून के इस खुले उल्लंघन पर आंखें मूंद ली हैं।
“अधिकाँश अतिक्रमण हटा दिए गये हैं। बस कुछ धार्मिक संगठनों के स्वामित्व वाली इमारतें हैं जिन्हें अभी ध्वस्त किया जाना है। हम संबंधित संगठनों के साथ बातचीत कर रहे हैं और जल्द ही इसका रास्ता निकाल लेंगे।”   ———–नगर निगम आयुक्त, रिंकू बिष्ट  

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