न्यूजीलैंड की नहीं, अब उत्तराखण्ड की कीवी से होगा किसानों का विकास 

रूद्रपुर। उत्तराखण्ड जैवप्रौद्योगिकी परिषद्, हल्दी, पंतनगर द्वारा पहली बार उत्तराखण्ड में जल्द ही कीवी मिशन शुरू करने जा रहा है। जिसकी शुरूआत परिषद अपने संस्थान जैवप्रौद्योगिकी संस्थान, पटवाडांगर से करेगा। यहां पर कीवी के पौधों का उत्पादन टिश्यू कल्चर विधि से किया जाएगा। वही इस मिशन के तहत पर्वतीय क्षेत्र की प्रथम आधुनिक पादप ऊतक संवर्धन प्रयोगशाला का निर्माण भी भविष्य में किया जाएगा। जिससे आने वाले समय में कीवी के पौधों की मांग को पूरे उत्तराखण्ड में पूरा किया जायेगा। जिससे कीवी की अधिक पैदावार कर उत्तराखण्ड के किसानों की आर्थिकी से जोड़कर उनको सशक्त बनाये जाने का कार्य किया जाएगा।  उक्त कार्य में उत्तराखण्ड के ग्रोथ सेन्टर के साथ परिषद् का अनुबन्ध भी किया जायेगा। जिसमें उत्पादित होने वाले कीवी फल को ग्रोथ सेन्टर द्वारा विपणन इत्यादि का कार्य किया जायेगा। परिषद् के निदेशक प्रो. डीके सिंह ने बताया कि पूर्व मंे परिषद् में स्थान कम होने के कारण कीवी के शोध कार्यो में बाधा आ रही थी। लेकिन शासन द्वारा जैवप्रौद्योगिकी संस्थान, पटवाडांगर परिषद को स्थानातांरित करने बाद कीवी के वृहद् उत्पादन हेतु गति मिल गई है। बताया कि अभी तक लोग न्यूजीलैंड की कीवी का स्वाद लेते थे लेकिन अब उत्तराखण्ड की कीवी के स्वाद का भी लुत्फ उठाएंगे। प्रो. सिंह ने बताया कि कीवी का उत्पादन सामान्यतः हल्के उपोष्ण और शीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र जिनकी समुद्रतल से ऊॅचाई 1000-2000 मीटर, 150 से0मी0, औसत वार्षिक वर्षा तथा सर्दियों में 7 डिग्री सेल्सियस तापमान लगभग 100-200 घण्टों का मिल सकता हो, वहां इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। उक्त जलवायु पटवाडांगर मंे कीवी के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। परिषद् द्वारा पटवाडांगर में चयनित क्षेत्र में कीवी के पौधे की सभी प्रकार की प्रजातियाॅ जैसे कि हेवर्ड, एलीसन, ब्रूनो, मोन्टी एवं ऐबाट तथा नर किस्म तोमुरी का रोपण किया जायेगा। जिसके लिए टी-बार विधि से प्रथम वर्ष में पौधे की शाखा को तार पर एक ओर बढ़ने तथा बांधने इत्यादि का कार्य किया जायेगा। टी बार के नीचे के क्षेत्र में खाली स्थान रहने के कारण वहां पर अन्य प्रकार की सब्जियाॅ उगा कर मल्टीक्रोपिंग की जायेगी तथा किसानों को उक्त खेती के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा।

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