भोंपूराम खबरी, पंतनगर। गाजर घास जागरूकता एवं उन्मूलन सप्ताहिक कार्यक्रम के तहत प्रजनक बीज उत्पादन केन्द्र पर श्रमिकों को गाजर घास से होने वाले नुकसान की जानकारी दी गई। इस दौरान वरिष्ठ शोध अधिकारी एवं परियोजनाधिकारी डा. तेज प्रताप ने बताया कि इस घास के दुश्श््रभाव से मनुष्यों में अस्थमा, चर्म रोग जैसे- डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, खाज, खुजली तथा जानवरों द्वारा इस खाने से हे फीवर हो जाता है। जिससे पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता कम हो जाती है। वही गाजर घास के पराकण बहुत ही छोटे एवं हल्के होते हैं जो मनुष्य के श्वास नली से होते हुए फेफड़े में पहंँच जातेे है। परियोजनाधिकारी ने बताया कि इसके द्वारा फसलों में लगभग 25-30 प्रतिशत की उपज में भी कमी पाई जाती है। डा. तेज प्रताप ने गाजर घास के नियंत्रण की यांत्रिक, रसायनिक एवं जैविक विधियों की भी विस्तार से जानकारी दी। उन्होनें गाजर घास से कम्पोस्ट बनाकर फसलों में खाद के रूप में प्रयोग कर अधिक उत्पादन लेने पर जोर दिया।
बीज उत्पादन केन्द्र के सह-निदेशक डा. अनिल कुमार ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्हे खरपतवार से इतना ज्यादा नुकसान होने की जानकारी मिली है। इस दौरान केन्द्र में गाजर घास को हाथ में दस्ताना लगाकर जड़ से उखाड़कर उन्मूलन भी किया गया। कार्यक्रम में डा. ओपी ओझा, डा. एके सिंह सहित दर्जनों कर्मचारी व श्रमिक मौजूद थे।