गायत्री का लक्ष्य हर बच्चा हो शिक्षित

भोंपूराम खबरी,रुद्रपुर। गुरौ न प्राप्यते यत्तन्नान्यत्रापि हि लभ्यते, गुरुप्रसादात सर्वं तु प्राप्नोत्येव न संशयः अर्थात गुरु के द्वारा जो प्राप्त नहीं होता, वह अन्यत्र भी नहीं मिलता। गुरु कृपा से निस्संदेह मनुष्य सभी कुछ प्राप्त कर ही लेता है। संस्कृत भाषा के इस श्लोक को अक्षरशः चरितार्थ करती हैं नगर के संजय नगर खेड़ा की प्राथमिक पाठशाला में अध्यापनरत शिक्षिका गायत्री पांडे। राज्यपाल सहित जिलाधिकारी, बाल संरक्षण व महिला आयोग से अपने शिक्षण कार्यों के पुरस्कृत की जा चुकी गायत्री मानती हैं कि शिक्षा व्यति व समाज के विकास के पथ पर बढ़ने का एकमात्र माध्यम है।

साल 2005 में उत्तराखंड में शिक्षिका के रूप में चयनित होने वाली गायत्री पांडे ने अपने अध्यापिका के रूप में सफ़र के विषय में न्यूज पोर्टल भोंपूराम खबरी से वार्ता की। उन्होंने बताया कि वह समाज के पिछड़े वर्ग की सेवा का सपना लेकर नौकरी में आई थी। इसके तहत उन्होंने आरम्भ से ही खाली समय मिलने पर गली-महल्लों में विपन्न परिवारों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। गायत्री के अनुसार लगभग 11 वर्ष यह सिलसिला अनवरत चलता रहा जिसके बाद साल 2016 में उधम सिंह नगर के तत्कालीन जिलाधिकारी स्व. अक्षत गुप्ता के मिशन आगाज शुरू किया। इसके तहत शहर में कचरा बीनने वाले गरीब बच्चों को शिक्षित किया जाना था। स्व. गुप्ता ने बच्चों के चयन के पश्चात् इनकी शिक्षा का दायित्व गायत्री को सौंपा और हरसंभव सहायता मुहैया कराई। पांच वर्षों में ही इस मिशन के तहत चयनित साठ बच्चे आज न सिर्फ पढाई करते हैं बल्कि अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोलते हैं। गायत्री ने बताया कि शुरुआत में इस कार्य में परेशानी आई जब कुछ बच्चों ने तो कुछ अभिभावकों ने पढ़ना गंवारा न किया। लेकिन समझाने पर वह माने और आज सभी बच्चे एक अच्छे भविष्य की नींव रख चुके हैं। गायत्री ने बताया कि आज भी विद्यालय आने वाले निर्धन परिवारों के बच्चों को वह किताबें, स्कूल बैग, यूनिफार्म, जूते आदि उपयोगी वस्तुएं अपनी तनख्वाह में से देती रहती हैं।

गायत्री ने बताया कि कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन के दौरान भी वह मलिन बस्तियों में पहुंचकर मोहल्ला क्लास लगाकर निर्धन बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास करती रही। उन्होंने कहा कि स्व. अक्षत गुप्ता उनके आदर्श हैं और गरीब बच्चों को चिकित्सक व इंजीनियर बनाने के उनके अधूरे सपने को पूरा करने के लिए वह जीवन पर्यंत शिक्षण का कार्य करती रहेंगी।

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