नगर निगम रुद्रपुर के लिए उच्च न्यायालय का आदेश रद्दी का कागज ——- चार साल बीतने पर भी काशीपुर बाईपास से नहीं हटा अतिक्रमण

भोंपूराम खबरी, रुद्रपुर।

उच्च न्यायालय के आदेश के चार वर्ष बीतने के बावजूद भी रुद्रपुर नगर निगम काशीपुर बाईपास स्थित लगभग डेढ़ सौ से अधिक व्यापारिक व व्यावसायिक अतिक्रमण नहीं हटा सका है। निगम की काहिली के चलते काशीपुर बाईपास पर न सिर्फ रोजाना जाम व दुर्घटनाओं की स्थिति बनती है बल्कि यहाँ अतिक्रमण भी पहले की अपेक्षा अधिक हो गए हैं।

ज्ञात हो कि शहर में अतिक्रमण के खिलाफ एक स्वयं सहायता समूह द्वारा जनहित याचिका दायर किये जाने के बाद साल 2016 में उच्च न्यायालय ने नगर में 1300 से अधिक अतिक्रमण ढहाए जाने के आदेश दिए थे। साल 2018 में इस आदेश पर नगर निगम ने अमल करते हुए बाजार क्षेत्र में सैकड़ों ढाँचे ढहा दिए थे। लेकिन इस दौरान भी काशीपुर बाईपास पर अवैध निर्माण कार्य ध्वस्त करना रह गया था। दरअसल निगम ने उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप काशीपुर बाईपास सड़क के बीच से दोनों तरफ 75 फीट तक अतिक्रमण हटाने का निर्णय लिया। इसके खिलाफ शहर के कई राजनीतिक दल और व्यापारिक संगठन खड़े हो गए। उनका कहना था कि सड़क के बीच से दोनों ओर 55 फीट ही ध्वस्तीकरण किया जाए। मामला राजनीतिक होने के साथ ही ठंडे बस्ते में चला गया। अलबत्ता नगर निगम ने एक-एक अतिक्रमण को चिह्नित करते हुए ध्वस्तीकरण की सीमा तय कर दी थी। इसमें से कई अतिक्रमण तो चालीस फीट से भी अधिक थे। इस बीच उच्च न्यायालय को जिला प्रशासन द्वारा यह सूचना दी गयी कि उनके आदेश अनुरूप अतिक्रमण ध्वस्त कर दिया गया है। लेकिन असलियत यह थी कि काशीपुर बाईपास को राजनीतिक दबाव में छुआ भी नहीं गया।

अब इस मामले में शहर के समाजसेवी मुखर हो चले हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक स्वार्थ के चलते शहर में अतिक्रमण नहीं हटाया जा रहा है। काशीपुर बाईपास पर हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद अतिक्रमण न हटने से न सिर्फ दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं बल्कि पैदल चलना दूभर हो चला है। नगर निगम के मानचित्रकार राम सिंह ने बताया कि कुल 172 अतिक्रमण काशीपुर बाईपास पर निगम द्वारा चिह्नित किये गए हैं। इसके लिए बाकायदा हर अतिक्रमण पर तोड़े जाने की दूरी भी लाल रंग से लिख दी गयी है। साथ ही सड़क के बीचोंबीच से दोनों ओर 75 फीट अतिक्रमण हटाया जाना है। लेकिन इस पर कब तक कार्रवाई होने के प्रश्न पर सिंह ने चुप्पी साध ली। अलबत्ता निगम के कुछ अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिला प्रशासन के उच्चाधिकारियों के निर्देश पर यह अतिक्रमण हटाओ अभियान स्थगित किया गया है।

अब देखने योग्य यह होगा कि जीरो टॉलरेंस का दंभ भरने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार व उसके सरकारी नुमाइंदों के लिए उच्च न्यायालय का आदेश पहले है या इस मामले में की जा रही राजनीति।

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