धूमधाम से हुआ श्री रामलीला मंचन का श्री गणेश, प्रथम दिवस हुआ नारद मोह का मंचन

भोंपूराम खबरी,रूद्रपुर- नगर की प्राचीनतम बस अड्डे वाली रामलीला मंचन का श्री गणेश मुख्य अतिथि श्री हरनाम जी के कर कमलों से फीता काटकर एवं प्रभु श्री रामचन्द्रजी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर एवं दीप प्रज्वलित कर संपन्न हुआ।

 

अपनें संबोधन मे मुख्य अतिथि श्री हरनाम जी नें कहा रामलीला मंचन एवं दशहरा या विजयादशमी भारत में सबसे शुभ और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, बड़े उत्साह के साथ य़ह त्योहार पूरे भारत में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। अलग-अलग नामों से जाने जाने के बावजूद इसका सार एक ही है- बुराई पर अच्छाई की जीत. यह हमारे भीतर नकारात्मकता और बुराई का अंत और नई शुरुआत की शुरुआत का भी प्रतीक है.

 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पवन अग्रवाल नें कहा कि रामलीला का मंचन हजारो वर्षो से किया जा रहा हैं लेकिन पहले यह वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण पर आधारित होती थी। सोलहवी शताब्दी में जब से तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरितमानस की रचना की तब से इसका मंचन पहले से और ज्यादा भव्य तरीके से होने लगा।

1625 ईसवीं में तुलसीदास जी की शिष्या मेघा भगत ने इसे वाराणसी के रामनगर में पहली बार मंचन किया जो रामचरितमानस पर आधारित थी।

तब से लेकर आज तक इसका मंचन निरंतर रूप से होता आ रहा हैं जिसमे सभी लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं व श्रीराम के जीवन मूल्यों व आदर्शों को सीखते हैं। हम सभी को पूरे परिवार के साथ आकर इस रामलीला का मंचन देखने आना चाहिए।

रामलीला के प्रथम दिवस नारद मोह की सुन्दर लीला का मंचन हुआ। देव ऋषि नारदजी की तपस्या से इंद्र का इंद्रासन डोल जाता है। उन्हें लगता है कि नारद मुनि वरदान में कहीं भगवान से उनका सिंहासन न मांग लें। इसलिए उनकी तपस्या को भंग करने के लिए वह अप्सराओं और कामदेव को भेजते हैं। यह सभी उनकी तपस्या भंग नहीं कर पाते हैं, जिससे नारद मुनि को अभिमान हो जाता है।

वह ब्रह्म जी एवं भगवान शिव के पास जाकर अपने इस उपलब्धि का बखान करते हैं।

नारद मुनि भगवान विष्णु के सामने जाकर भी अभिमानी बातें करते हैं। उनके अभिमान को नष्ट करने के लिए भगवान एक काल्पनिक लोक का निर्माण करते हैं, जिसकी राजकुमारी का स्वयंवर होना होता है। लेकिन राजकुमारी विश्वमोहिनी की शर्त होती है कि वह सिर्फ श्रीहरि से ही विवाह करेगी।

नारद मुनि विश्व मोहिनी पर मोहित हो जाते हैं और उनसे विवाह करने के लिए नारायण से उनका हरि रूप मांगते हैं। देवर्षि नारद के कथन अनुसार भगवान उन्हें हरि रूप यानी वानर का रूप प्रदान कर देते हैं। जिसके कारण स्वयंवर में उनका मजाक बनता है। जिसके बाद विश्व मोहिनी भगवान श्रीहरि से विवाह करती है।

इस बात से नाराज होकर नारद अपने ईष्ट भगवान नारायण को श्राप देते हैं कि उन्हें धरती पर मानव रूप में आना पड़ेगा और वानर ही उनकी सहायता करेंगे। जिसके बाद भगवान उन्हें बताते हैं कि उन्होंने उनसे हरि रूप मांगा था, न कि श्रीहरि का रूप। हरि का अर्थ वानर होता है। जिसके बाद नारद मुनि को अपनी भूल का अहसास होता है। नारद जी के किरदार मे मनोज मुंजाल नें यादगार अभिनय किया।

इस दौरान श्री रामलीला कमेटी के महासचिव विजय अरोरा, कोषाध्यक्ष नरेश शर्मा, विजय जग्गा, महावीर आज़ाद, राकेश सुखीजा , हरीश अरोड़ा, राजू छाबड़ा, भारत भूषण चुग, विजय भूषण गर्ग, रवि, मोहन लाल भुड्डी, महावीर आजाद, राकेश सुखीजा, प्रेम खुराना, आशीष ग्रोवर आशू, हरीश सुखीजा, मनोज मुंजाल, विशाल भुड्डी, संजीव आनन्द, राम कृश्ण कन्नौजिया, अनिल तनेजा, गौरव तनेजा, रमन अरोरा, सुभाश तनेजा, राजकुमार कक्कड़,विजय विरमानी, चिराग कालड़ा, सचिन मंुजाल, अमन गुम्बर, वीशू गगनेजा, रोहित खुराना, गोगी, अमित चावला, सन्नी आहूजा आदि मौजूद थे।

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